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आवारा बादल


संगम स्थल 


 रघु और रवि दोनों में गहरी दोस्ती हो गई । रवि रघु का चेला बन गया और रघु उसका "लव गुरु" । अधिकांश समय दोनों दोस्तों का साथ गुजरने लगा । रवि कक्षा 11 का विद्यार्थी था तो रघु कक्षा 12 का । कक्षा अलग अलग होने से कक्षा में साथ साथ तो नहीं बैठ सकते थे मगर बाकी समय वे साथ सात ही रहते थे । रवि रघु के असिस्टेंट की भूमिका में आ गया था । रवि रघु के छोटे मोटे काम कर देता था और बदले में वह "टिप्स" ले लिया कयता था । रघु के पास एक "बुलेट" थी । उन दिनों में "बुलेट" चलाने का एक अलग ही फैशन था । मोटर साइकिल तो और भी बहुत सारी थी जैसे "यजदी", राजदूत वगैरह । मगर "बुलेट" बुलेट की तरह ही चलती थी । उसकी आवाज भी बड़ी "कर्णप्रिय" थी । रघु और रवि दोनों बांकों की पर्सनैलिटी भी बहुत शानदार थी । जब वे हुस्न की गलियों से बुलेट दनदनाते हुए गुजरते थे तो सारी लड़कियां अपना दिल थाम लेती थीं । 
रघु ने बुलेट से पूरे गांव के कई चक्कर काट डाले । रवि को अब अपने गांव का आईडिया भी हो गया था और उसे यह भी पता चल गया था कि कौन सा "चांद" किस गली में "चांदनी" फैला रहा है । उसकी कामनाएं बलवती होती जा रही थी । वह चांद की "निर्मल" चांदनी में जी भरकर नहाना चाहता था । 
रघु का एक दोस्त था लवी । जैसा नाम वैसी ही शख्सियत । रोमियो जैसा था और हरकतें भी रोमियो वाली ही थी । लड़कियों में दिलचस्पी होने के कारण वह कोई ऐसा काम धंधा करना चाहता था जहां लड़कियों का सदैव आना जाना लगा रहता हो । पढने लिखने में तो वह जीरो था और उसे बाबू बनना भी नहीं था । वह तो हमेशा अप्सराओं के ख्वाब देखता था और चाहता भी यही था कि वह अप्सराओं के बीच में ही रहे । ऐसा वह दो कामों के माध्यम से कर सकता था । या तो वह लड़कियों से संबंधित सामान की दुकान खोल ले जैसे कपड़े, इनर गारमेंट, सैंडल, पर्स या फिर चूड़ी, कंगन वगैरह की । या फिर डांस टीचर बनकर उन्हें डांस सिखाकर  उनके बीच रह सकता था । उसने चूड़ी, कंगन, काजल, सिंदूर, लिपिस्टिक वगैरह की दुकान खोल ली । बस, दुकान खुलने से लेकर बंद होने तक लड़कियों से घिरा रहता था लवी । इस काम में पैसा भी खूब था और "स्कोप" भी बहुत था । स्कोप मतलब लड़कियों से संबंध बनाने के अवसर ।  उसका ध्यान पैसे से ज्यादा स्कोप में था ।
रघु अक्सर उसकी दुकान पर आता जाता रहता था । रघु तो मनचला, छंटा हुआ बदमाश नंबर एक लड़का था ही । फिर वहां पर एक से बढकर एक हसीन लड़कियां आती थी । लवी और रघु उन लड़कियों को चूड़ी पहनाने के बहाने से स्पर्श करते थे । हाथ दबा देते थे । फिर लड़की की प्रतिक्रिया के अनुसार आगे की "कार्यवाही" करने की योजना बनाते थे । रघु ने लवी की दुकान पर आने वाली सैकड़ों लड़कियां पटा ली थी । लवी के तो कहने ही क्या थे ? 

प्रेम की अंतिम मंजिल "समागम" है । इस कार्यक्रम के लिए   प्रेमी युगल को नितांत एकांत स्थान की विशेष आवश्यकता होती है । सार्वजनिक स्थानों पर लड़कियां मिलने से कतराती हैं इसलिए निजी स्थान ही चाहती हैं वे । ऐसा स्थान या तो लड़की का घर हो सकता था या फिर लड़के का । लेकिन दोनों ही जगह रिस्क बहुत ज्यादा होती है । इसलिए इन स्थानों को सुरक्षित नहीं माना जा सकता था । इस "नेक" काम के लिए स्कूल और मंदिर में तो मिलन हो  नहीं सकता था । वहां भीड़भाड़ बहुत रहती है और भावनाएं भी धार्मिक होती हैं ।  गांव में बाग बगीचे तो होते नहीं , फिर कहाँ मिलते वे लोग ? दोनों के सब्र का बांध भी टूटने को तत्पर था । आखिर कब तक रोकता वह यौवन का वेग ? 

कहते हैं कि जहां चाह वहां राह । आदमी सोचे तो क्या नहीं हो सकता है ? प्रयास करने से सब कुछ संभव है  । एक रस्सी के बार बार रगड़ खाने से पत्थर भी घिस जाता है । पानी पहाड़ों को तोड़कर अपना रास्ता बना लेता है । प्रकाश सौ बाधाओं को पार कर अपने गंतव्य स्थल पर पहुंच ही जाता है । वायु को कौन रोक सका है अब तक ? 

रघु ने इसका भी इंतजाम कर ही लिया । रघु के दोस्त लवी का एक दोस्त था प्यारे लाल । उसका फोटो स्टूडियो था । लफंगों के दोस्त भी लफंगे ही होते हैं । लवी जैसा था उसका दोस्त उससे दो कदम आगे था । प्यारे ने भी फोटो स्टूडियो कुछ इसी नीयत से खोला था । एक दो बार उसके स्टूडियो पर हंगामा भी हो चुका था । लोग बातें बना रहे थे कि प्यारे ने एक दो लड़कियों को कुछ पिलाकर अश्लील फोटो खींच लिये थे और उनको ब्लैकमेल करने लगा था । अच्छी खासी पिटाई होने के बाद वह सुधरा था । 

रघु, लवी और प्यारे के साथ साथ रवि भी हो लिया । चारों का चौगड्डा बन गया था । प्यारे के साथ आने से जगह की समस्या भी हल हो गई । अंदर स्टूडियो में "रासलीला" मनाई जा सकती थी । रघु ने गर्लफ्रेंड्स को वहां लाना शुरू कर दिया था । लड़कियों को फोटो स्टूडियो में आने में कोई समस्या नहीं आ सकती थी क्योंकि फोटो खिंचवाने की आवश्यकता तो रहती ही थी इसलिए बहाना बनाने की जरूरत नहीं रह गई थी । स्टूडियो में आने वाली हर लड़की को पता होता था कि वह वहां पर क्यों जा रही है । इसलिए वह भी मानसिक व शारीरिक रूप से तैयारी करके ही आती थी वहां पर । 

रघु की संगत में रवि "आवारा बादल" बन गया था । लड़कियां ही उसकी जिंदगी बन गई थी । चौबीसों घंटे उन्हीं के बारे में सोचना, उनकी ही बाते करना, उनको पटाने के तरीकों पर सोचना , उनका पीछा करना , उन्हें घुमाने लेकर जाना , उनके लिये गिफ्ट सलेक्ट करना । बस इसी में ही दिन गुजर जाता था उसका । पढने की बात कौन कहे उससे । अब उसका मन पढाई में लगता भी नहीं था । 

जब एक बार हुस्न का दीदार हो जाता है 
तो यकीनन इश्क को बुखार हो जाता है 
महबूबा की आंखों के जाम पीने के लिए 
पागल दिल बेचारा मचल मचल जाता है 

फिर उनके दीदार के लिए उनकी गलियों की खाक छानी जाती है । सीटी बजाकर उन्हें संकेत दिया जाता है । जब वे बाहर आ जाती हैं तब उन्हें देखकर इस दिल ए नादान को चैन आता है । रवि की आवारगी बढती ही जा रही थी । उसकी लिस्ट में लड़कियों की संख्या भी बढ़ती जा रही थी । अब तक आठ दस लड़कियां उसकी गर्लफ्रेंड्स बन चुकी थीं । वह रघु के नक्शेकदम पर चलने लगा । वह शायद नहीं जानता था कि इसकी मंजिल कहाँ है ? वह तो एक ऐसी अंधी दौड़ में भाग ले रहा था जिसका कोई अंत नही था । उसने यह रास्ता खुद ही चुना था । इसके लिए वह खुद ही जिम्मेदार था और कोई नहीं । 


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2 Comments

Shivani Sharma

09-Jan-2022 09:47 AM

Blank h

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Hari Shanker Goyal "Hari"

09-Jan-2022 09:53 AM

Thanks Mam for remindering me . Now, it is posted . You can read now . Thanks again

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